कुमाऊं में लाचार व्यवस्था :सरकारी दावों की जमीनी हकीकत की पोल खोलती रिपोर्ट!

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सरकारी दावों की जमीनी हकीकत

गिरीश चन्दोला

हल्द्वानी। कोरोना के बढ़ते प्रकोप ने प्रदेश सरकार की लचर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल पट्टी खोल कर रख दी है। आलम यह है कि जीवन रक्षा के लिए आवश्यक दवाइयों से लेकर वैक्सीन, ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटीलेटर का प्रदेश के अस्पतालों में टोटा नजर आ रहा है। सरकार के कोरोना से पार पाने को लेकर किये गए तमाम बड़े-बड़े दावे ध्वस्त होते नजर आ रहे हैं ।मैदानी इलाकों में स्थिति थोड़ा बहुत अवश्य ठीक है लेकिन सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों के लोग तो आज भी स्वास्थ्य खराब होने पर भगवान भरोसे हैं उसी का नतीजा है कि प्रदेश के कई गांव में इन दिनों वायरल तेजी से फैलने की खबरें मीडिया में प्रदर्शित हो रही हैं । कई स्थानों पर ज्वर आने से मौत होने की भी बात कही जा रही है। दूसरी तरफ आंकड़ों को कम ज्यादा करने की बाजीगरी में जुटी प्रदेश सरकार अब जाकर कहीं कुंभ करणी नींद से जागी है। सरकार का कहना है कि सुदूरवर्ती क्षेत्रों में अब घर घर जाकर कोविड-19 की टेस्टिंग की जाएगी, पर कहीं पर भी घर घर जाकर टीकाकरण करने की बात अब तक नहीं कहीं गयी है। इतना ही नहीं प्रत्येक जनपद में कोरोना के इलाज से जुड़ी सभी आला सुविधाएं सरकारी स्तर से जुटाई जाएंगी। यहां बता दें कि प्रदेश के पहाड़ी जनपदों में उत्तर प्रदेश शासन के दौरान तो चिकित्सा सुविधाओं का अभाव था ही। राज्य निर्माण के 20 साल बाद भी पहाड़ में स्वास्थ सेवाओं में कोई विशेष फेरबदल नहीं हो पाया है। राज्य निर्माण के बाद बदलाव के नाम पर इतना फर्क अवश्य आया है कि गांव में जहां कहीं पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हुआ करते थे वहां आज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन अवश्य देखने को मिल रहा है, पर स्वास्थ सेवाओं में गुणवत्ता का स्तर एक इंच भी नहीं बढ़ पाया है। सरकार ने दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अवश्य खोल दिए पर वहां स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं का गांव मे आज भी अभाव बना हुआ है ।पहाड़ पर खोलें गए स्वास्थ्य केंद्रों का हाल यह है कहीं तो अब तक चिकित्सक नियुक्त ही नहीं हो पाए हैं और अगर कहीं किसी सामुदायिक केंद्र पर चिकित्सक की तैनाती हुई भी है तो वह या तो अपने ड्यूटी से नदारद मिलते हैं या फिर हफ्तों तक डॉक्टर साहब सेंटर पर आते ही नहीं है। यदि किसी सामुदायिक केंद्र पर चिकित्सक ड्यूटी पर आते भी हैं तो वहां या तो दवाइयों या फिर चिकित्सकिया उपकरणों का अभाव बना रहता है जिसके चलते अक्सर संकट में फंसे मरीज के बहुमूल्य प्राणों की रक्षा नहीं हो पाती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि राज्य निर्माण के बाद सत्ता में आई सरकारों ने पहाड़ में स्वास्थ सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में प्रयास नहीं किया। इसे उसकी मजबूत इच्छा शक्ति की कमी कहें या कुछ और पर अब तक सरकारी स्तर से जब जब इस दिशा में डॉक्टरों को पहाड़ पर चढ़ाने का प्रयास किया गया उसका हर प्रयास विफल रहा। इसके बाद एक तरह से सिस्टम ने एक बार फिर पहाड़ को उसके रहमों करम पर छोड़ दिया। अक्सर होता है कि जब कभी भी कोई बड़ी आपदा दस्तक देती है उसी समय राज्य के नीति नियंताओं को पहाड़ की याद आती है। इस बार भी जब कोरोना मैदान के बाद पहाड़ को घेरना शुरू किया और अचानक से पहाड़ी क्षेत्रों में भी कोरोना व उसकी बीमारियों से जुड़े मरीजों का आंकड़ा बढ़ने लगा तो राज्य सरकार को फिर से पहाड़ की याद ताजा हो आई। सरकार के मुखिया व सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोग हरकत में आ गए और इसी के साथ पहाड़ में लुंज पुंज अवस्था में पड़े स्वास्थ विभाग को चुस्त-दुरुस्त करने पहाड़ में कोरोना प्रवाहित लोगों के स्वास्थ्य परीक्षण को लेकर घर घर कोरोना टेस्टिंग किए जाने के बयान मीडिया की सुर्खियां बनने लगी। यहां जो एक सबसे बड़ा सवाल है कि लंबे समय से पहाड़ में रहकर पहाड़ सी परेशानियों का सामना कर अपनी जिंदगी की गुजर बसर करने वाली जनता का दुख दर्द केवल बड़ी आपदा के समय ही प्रदेश सरकार वह उसके नौकरशाहों को क्यों याद आता है। इतना ही नहीं आपदा के थमते ही उन्हें फिर से क्यों उनके रहमो करम पर छोड़ दिया जाता है। क्यों नहीं राज्य निर्माण के दो दशक बाद भी पहाड़ वासियों को स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं आज तक मुहैया नहीं हो पाई। ऐसे ही तमाम सवाल हैं जिनका जवाब पहाड़ के लोग अपने ही चुनी सरकार से जानना चाहते हैं।अब यहां आगे देखने वाली बात होगी कि कोरोना की मौजूदा समस्या से पार पाने के बाद राज्य की मौजूदा सरकार पहाड़ में लगभग लगभग लुप्त हो चुके स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के अपने वादे पर खरा उतरती है या फिर पूर्वर्ती सरकारों की भाति आपदा पर मरहम लगते ही पहाड़ को उसके हाल पर जीने मरने के लिए छोड़ देती है। खैर जो भी हो यह तो भविष्य में आने वाला वक्त ही तय करेगा। इतना जरूर है कि यदि सत्ता में आने वाली सरकार अब भी पहाड़ को लेकर संजीदा नहीं हुई तो पहाड़ उन्हें उनकी करनी व कथनी के लिए हरगिज माफ नहीं करेगा।

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