त्रिवेंद्र के ‘दुश्मन’… ‘तीरथ’ के दोस्त… नई सरकार…’पुराना’ टेस्ट
तीरथ सिंह रावत की कैबिनेट तैयार हो चुकी है, अब जनता को और पार्टी नेताओं को अपने नए मुख्यमंत्री विकास की उम्मीद है, रोजगार की उम्मीद है, असंतोष दूर होने की उम्मीद है, लेकिन क्या तीरथ सिंह रावत इन उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे? क्या नेताओं, कार्यकर्ताओं और जनता के सपनों को एक साथ पूरा कर पाएंगे? ये पहलू इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि जो लोग सरकार में रहते हुए त्रिवेंद्र रावत के लिए ‘दुश्मन’ या विलन साबित हुए उन सबको तीरथ ने भी अपना दोस्त बनाकर कैबिनेट में रखा है। मतलब नई सरकार का टेस्ट भी पुराना ही है, तीरथ रावत कांग्रेस से आए एक भी विधायक को कैबिनेट से बाहर करने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। 2017 में त्रिवेंद्र ने कांग्रेस से आए 5 लोगों को कैबिनेट में शामिल किया था, वो पांच चेहरे तीरथ की टीम का भी हिस्सा हैं। पांच में से चार चेहरे तो ऐसे हैं जो हमेशा त्रिवेंद्र के लिए सिरदर्द बने रहे। सतपाल महाराज की पूरे चार साल तक त्रिवेंद्र रावत से ठनी रही। कैबिनेट की बैठक के अलावा सतपाल महाराज ने कभी भी त्रिवेंद्र के साथ बैठक में शामिल होना जरूरी नहीं समझा। जिस भी कार्यक्रम में सीएम शामिल हुए उस कार्यक्रम से बचने के लिए सतपाल महाराज बहाने खोजते रहे। ऐसा ही हाल हरक सिंह रावत की भी रहा, अफसरशाही के खिलाफ सवाल उठाना हो या फिर सीएम पर काम ना करने देने की तोहमत जड़ना ये सब हरक रावत ने सबसे पहले कहा। यशपाल आर्य भी अफसरों के रैवेये से कई बार नाराज होकर यशपाल ने फटकार लगाई तो कई बार सीएम की सुस्ती पर इशारों ही इशारों में तंज भी कसा। रेखा आर्य ने तो एक अफसर की गुमशुदगी की रिपोर्ट तक लिखा दी और सीएम के पाले में गेंद डाल दी। हालात यहां तक पहुंच गए कि एक के बाद एक कई अफसरों ने रेखा आर्य के साथ काम करने तक से इनकार कर दिया, हालांकि सुबोध उनियाल के साथ ऐसा कोई विवाद नहीं जुड़ा लेकिन एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एनडी तिवारी के शासन की तारीफ करके उन्होंने अपने ही सीएम और सरकार को असहज जरूर कर दिया था। यानि कांग्रेस से आए नेताओं ने त्रिवेंद्र रावत के लिए किसी ना किसी रूप में परेशानी जरूर खड़ी की। अब उन्हीं मंत्रियों के साथ तीरथ रावत कैसे तालमेल बनाएंगे और कैसे बेहतर नतीजे दे पाएंगे इसे लेकर सवाल उठना लाजिमी है। तीरथ रावत की टीम में कुछ युवा चेहरों को शामिल करने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मदन कौशिक के बदले बुजुर्ग बंशीधर भगत को कैबिनेट में जगह दी गई है, लेकिन अध्यक्ष के तौर पर उनकी नाकामी के बाद उन्हें सिर्फ संतुष्ट करने के लिए ऐसा किया गया है। दूसरी ओर दिवंगत प्रकाश पंत की जगह बुजुर्ग बिशन सिंह चुफाल लाए गए हैं। चुफाल वही नेता हैं जिन्होंने सबसे पहले त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ मोर्चा खोला था, मार्च 2017 में कैबिनेट गठन के साथ ही बिशन सिंह ने त्रिवेंद्र पर अनदेखी का आरोप लगाया था और बाद में वो त्रिवेंद्र की शिकायक लेकर दिल्ली तक पहुंचे थे, अब तीरथ की टीम में त्रिवेंद्र के ये दुश्मन कितना कमाल कर पाएंगे। ये काफी दिलचस्प होगा। अरविंद पांडे को लेकर भी कई बार सवाल उठते रहे हैं और उनके विभाग भी विवादों में ही रहे हैं अब तीरथ के साथ अरविंद कितना और क्या अच्छा करेंगे इस पर हर किसी की नज़र रहेगी। तीरथ की कैबिनेट में गणेश जोशी और यतीश्वरानंद जरूर दो नए चेहरे हैं लेकिन बेहद कम वक्त में ये कैसा काम कर पाएंगे इसे लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता। धन सिंह रावत भी त्रिवेंद्र के काफी करीबी रहे हैं ऐसे में तीरथ रावत उन पर कितना भरोसा करेंगे या खुद धन सिंह रावत तीरथ का भरोसा कैसे जीतेंगे ये देखना भी दिलचस्प होगा। इन तमाम पहलुओं के बीच ही एक सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी के पास काबिल विधायक नहीं थे जो कांग्रेस से आए पांच लोगों को इस बार भी कैबिनेट में जगह देने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा। बहराल टीम तैयार हो गई है, दावों का दौर भी शुरू हो चुका है अब इंतजार इसी बात का है कि तीरथ रावत इन पुरानों चेहरों के सहारे ऐसा क्या नया करेंगे जो त्रिवेंद्र रावत नहीं कर सके। सवाल ये भी है कि अगर कैबिनेट के सभी लोग इतने काबिल थे तो फिर त्रिवेंद्र की कुर्सी क्यों चली गई, आखिर क्यों त्रिवेंद्र सरकार को उनकी ही पार्टी ने नकारा साबित कर दिया और इसकी क्या गारंटी है कि पुराने मंत्रियों ने पुराने सीएम के साथ जो किया वो नए मुख्यमंत्री के साथ नहीं करेंगे। सवाल और भी हैं लेकिन अभी सरकार नई है और इन सवालों का जवाब भी धीरे धीरे मिल ही जाएगा