तीरथ को कमान….राह नहीं है आसान…कैसे थामेंगे गुटीय घमासान?
उत्तराखंड में बीजेपी ने चेहरा बदल कर 2022 के लिए सियासी बिसात बिछा दी है। त्रिवेंद्र रावत से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन कर तीरथ रावत को सत्ता सौंपी गई है। तीरथ के पास अब वक्त कम है और चुनौतियां काफी ज्यादा हैं। सबसे पहली चुनौती उन फैसलों का समाधान निकालना है जिन्हें लेकर त्रिवेंद्र के खिलाफ जनता के साथ साथ पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों में भी आक्रोश था। यानि अब निगाहें इसी बात पर रहेंगी कि गैरसैंण को मंडल बनाए जाने और देवस्थानम बोर्ड को लेकर त्रिवेंद्र सरकार के फैसले का मुख्यमंत्री तीरथ रावत क्या करते हैं ?
तीरथ की दूसरी चुनौती कैबिनेट का गठन करने की है। तीरथ की टीम में कौन-कौन होगा और किस-किस का पत्ता कटेगा इसे लेकर हर तरफ अटकलें हैं। तीरथ रावत की कैबिनेट में त्रिवेंद्र के कितने मंत्री जगह बना पाएंगे इस पर सबकी निगाहें रहेंगी, इसके अलावा कितने नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा इस पर हर कोई नज़र गढ़ाए बैठा है। असल में तीरथ को क्षेत्रीय और जातीय संतुलन के अलावा गुटीय संतुलन भी बनाना है, लिहाजा कैबिनेट का गठन वास्तव में उनकी सियासी समझ और उनके सियासी भविष्य का रोडमैप भी तय करेगा। मंत्री बनने की हसरत पाले हुए कई नेता हैं, जिन्हें संतुष्ट करने में तीरथ को परेशानी होना तय है। तीरथ पर इस बात को लेकर भी निगाहें रहेंगी कि 2017 में कांग्रेस से बीजेपी में आए कितने नेताओं को वो अपनी कैबिनेट का हिस्सा बनाते हैं, क्योंकि अब चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं और अगर यहां हल्की सी चूक हुई तो बीजेपी का पुराना कैडर शायद पार्टी से खफा हो जाए और फिर 2022 में उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
मंत्री पद की चाहत रखने वाले विधायकों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। कई विधायक खुलकर बोल रहे हैं तो कई लोग इंतजार कर रहे हैं। बिशन सिंह चुफाल, चंदन रामदास, बलवंत भौर्याल, राजेश शुक्ला, दलीप सिंह रावत, गोपाल सिंह रावत, महेंद्र भट्ट, मुन्ना सिंह चौहान, गणेश जोशी, खजान दास ये वो चेहरे हैं जो त्रिवेंद्र कैबिनेट के विस्तार में अपना नंबर आने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन विस्तार से पहले ही त्रिवेंद्र का खुद ही पत्ता कट गया। ऐसे में तीरथ सिंह रावत की तरफ भी ये सभी विधायक हसरत भरी निगाहों से देख रहे हैं।
तीरथ रावत का सत्ता में आना उत्तराखंड बीजेपी की गुटीय राजनीति के लिहाज से भी काफी अहम बदलाव है। असल में तीरथ रावत खुले तौर पर खंडूरी समर्थक रहे हैं यानि वो पूरी तरह खंडूरी गुट के ही नेता हैं। इसकी बानगी देखने को भी मिल चुकी है। 10 मार्च को शपथ लेने के बाद तीरथ रावत ने पहली मुलाकात किसी नेता से की है तो वो खंडूरी ही हैं। 11 मार्च को तीरथ रावत खुद खंडूरी के आवास पर गए, उनका हाल जाना और आशीर्वाद भी लिया। इस दौरान खंडूरी भी काफी उत्साहित नज़र आए और तीरथ की तारीफ के बहाने इशारों ही इशारों में उन्होंने त्रिवेंद्र रावत पर निशाना साध दिया। खंडूरी ने कहा कि तीरथ रावत ईमानदार हैं, लंबे राजनीतिक जीवन के बाद भी उन पर कोई दाग नहीं लगा है। खंडूरी के मुताबिक लीडर की छवि अगर साफ सुथरी हो तो जनता का भरोसा भी बढ़ जाता है। इसीलिए तीरथ के नेतृत्व में बीजेपी को 2022 में जीत मिलना तय है। खंडूरी के इस बयान के मायने समझे जाएं तो उन्होंने नाम लिए बिना त्रिवेंद्र पर तंज कस दिया और ये भी संकेत दे दिए कि त्रिवेंद्र की छवि की वजह से शायद 2022 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल भी होना पड़ जाता। खंडूरी के इन तेवरों से साफ है कि आने वाले दिनों में त्रिवेंद्र या दूसरे गुटों को सरकार में तरजीह ना के बराबर मिलेगी यानि दबदबा खंडूरी गुट का ही रहेगा। इसकी पहली छाप कैबिनेट गठन में देखने को मिलने की पूरी उम्मीद है। हालांकि इसके बाद बीजेपी का अंदरुनी संग्राम बढ़ने के भी पूरे आसार हैं और उससे तीरथ रावत कैसे निपटेंगे ये देखना बेहद दिलचस्प होगा। कैबिनेट की कसरत पूरी करने के बाद तीरथ रावत के सामने अपने लिए सेफ सीट खोजना और गढ़वाल लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार को जिताना भी बड़ी चुनौती होगी। मतलब आने वाला वक्त तीरथ के लिए हर रोज नए सवाल लाएगा और उन सवालों का जवाब भी तीरथ को तेजी से देना होगा, वरना 2022 के लिए बीजेपी आलाकमान ने उनसे जो उम्मीदें की हैं वो टूटते देर नहीं लगेगी। अब सवाल इसी बात का है कि आखिर तीरथ रावत कैसे आगे बढ़ते हैं और जनता के साथ साथ पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने में कितने कामयाब रहते हैं।