तूफान रुका! पिक्चर अभी बाकी है

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बहुगुणा के बोल….उत्तराखंड की सियासत में झोल!

शनिवार को आया राजनीतिक तूफान हालांकि अभी कुछ समय के लिए थम गया है पर पक्षों समय के लिए थम गया है अंतिम समय में पर्यवेक्षकों ने संघ कार्यालय जाकर समय में संघ कार्यालय में जाकर जो गोपनीय मतगणना की उससे लग रहा है कि पिक्चर अभी बाकी है दिल्ली से कोई बड़ा फरमान आ सकता है राजनीतिक पंडित अभी भी हार मानने को तैयारहै का मानना है अभी पिक्चर खत्म नहीं हुई है उनका मानना है कि अभी तो तूफान थमा है एग्री पिक्चर सामने आएगी स्मरणीय है कि उत्तराखंड की सियासत में मार्च का महीना एक बार फिर सियासी अटकलों और कयासों का दौर लेकर आया। 6 मार्च को बीजेपी खेमे में दिल्ली से लेकर देहरादून तक अचानक खलबली मच गई। मुख्यमंत्री गैरसैंण में बजट के बाद थोड़ा सा सुस्ता रहे थे इसी बीच सोशल मीडिया और मीडिया में नेतृत्व में बदलाव की खबरें तैराने लगी। इस ख़बर ने बैचेनी उस वक्त और ज्यादा बड़ा दी जब प्रदेश बीजेपी प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह भी अचानक ही देहरादून पहुंच गए और कोर ग्रुप की बैठक बुला ली। बैठक की जानकारी मिलते ही गैरसैंण में मौजूद सत्ता पक्ष और विपक्ष के खेमे में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी। दिल्ली से पहुंचे नेताओं ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी बुलावा भेजा और वो भी आनन फानन में हेलीकॉप्टर के जरिए बैठक में शामिल होने देहरादून पहुंच गए। मुख्यमंत्री के अलावा बीजेपी के कई विधायक भी बारी-बारी देहरादून की उड़ान भरने लगे। इसी अफरातफरी के बीच सरकार ने बजट पास कराया और विधानसभा की कार्यवाही भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले बीजेपी के पांचों लोकसभा सांसदों को बैठक के लिए बुलाया जा चुका था, राज्यसभा सांसद नरेश बंसल भी बैठक में मौजूद रहे।

                          मुख्यमंत्री पद के कितने दावेदार?



              बैठक शुरू हुई तो मुख्यमंत्री को हटाए जाने की ख़बर और भी तेजी से फैलने लगी, हर किसी की जुबान पर सीएम बदलने की ही चर्चा थी। बीजेपी नेताओं के बीच कई घंटे तक मंथन चलता रहा, इस दौरान सीएम पद के लिए कई चेहरों के नाम भी उत्तराखंड की सियासी फिजाओं में तैरने लगे। हर नेता का समर्थक अपने नेता को ही मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करता नज़र आया। किसी ने अनिल बलूनी को दमदार बताया तो कोई निशंक की पैरवी करने लगा। कई लोगों की जुबान पर प्रदेश महामंत्री सुरेश भट्ट और सासंद अजय भट्ट का नाम भी आया। इसके अलावा ये भी हवा उड़ती रही कि त्रिवेंद्र रावत की पंसद का ही कोई मंत्री अब सीएम की कुर्सी पर काबिज होगा।



                                                          बदलाव की अटकलों पर विराम

                   अटकलों और कयासों के इस दौर के बीच ही त्रिवेंद्र रावत बैठक से बाहर निकल गए इसके बाद कहा गया कि उन्हें दिल्ली तलब कर लिया गया है और किसी भी वत्त नए मुख्यमंत्री की घोषणा हो सकती है। इस ख़बर के बाद राज्य की जनता के बीच भी दिलचस्पी बड़ गई और बीजेपी कार्यकर्ता भी उत्सुकता से पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए रहे। लेकिन देर शाम जब बैठक खत्म हुई तो प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने तमाम अटकलों को खारिज कर दिया। बंशीधर ने दावा किया कि नेतृत्व परिवर्तन जैसी कोई संभावना नहीं है और बैठक सिर्फ सरकार के चार साल के कार्यकाल पूरा होने को लेकर बुलाई गई थी, मदन कौशिक ने भी यही बात दोहराई, अजय भट्ट और दूसरे नेताओं ने भी नेतृत्व में बदलाव की ख़बरों को महज अफवाह करार दिया। यानि सुबह से जो गहमागमही चल रही थी उस पर पार्टी नेताओं ने विराम लगाने की कोशिश की।





                                           बहुगुणा के बयान के क्या मायने?

                  इसके बाद सीएम त्रिवेंद्र रावत ने भी अचानक विधायकों की बैठक बुला ली, जिमसें कई विधायक पहुंचे। सीएम के साथ हुई बैठक को भी सरकार के चार साल के कार्यकाल पूरा होने और उससे जुड़े कार्यक्रमों की तैयारी से जोड़कर देखा गया। बैठकों के इस सिलसिले के बीच ही पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से बीजेपी में गए विजय बहुगुणा ने भी त्रिवेंद्र रावत ने मुलाकात की। सीएम से मिलने के बाद बहुगुणा ने भी फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन की ख़बरों से इनकार किया और विकास को आगे बढ़ाने का दावा करने लगे। लेकिन विजय बहुगुणा के एक जवाब के बाद त्रिवेंद्र रावत के सियासी भविष्य को लेकर कयास और अटकलें लगने लगी हैं। दरअसल विजय बहुगुणा से पूछा गया था कि क्या 2022 का चुनाव त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, इस पर पूर्व सीएम ने पहले तो चुप्पी साथ ली लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि चुनाव में चेहरा नरेंद्र मोदी का रहता है और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का रहता है, ऐसे में त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में चुनाव होगा या नहीं होगा इसका फैसला भी आलाकमान ही करेगा। यानि विजय बहुगुणा ने साफ कर दिया कि त्रिवेंद्र रावत के चेहरे पर या नेतृत्व में चुनाव लड़ने से बीजेपी को कुछ तो परहेज है या एतराज है।





                                         त्रिवेंद्र बच गए या बचाए जा रहे हैं?

             अब सवाल इसी बात का है कि क्या वास्तव में त्रिवेंद्र रावत की कुर्सी सेफ है, क्या वास्तव में त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री के तौर पर पांच साल पूरे कर पाएंगे। बहरहाल इन सवालों के जवाब में फिलहाल तो बीजेपी बदलाव से इनकार कर रही है, लेकिन इतना तय है कि अंदर खाने बीजेपी में बड़ा सियासी तूफान चल रहा है, यही वजह है कि विजय बहुगुणा सरीखे नेता भी त्रिवेंद्र के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर हामी नहीं भर रहे हैं। एक सवाल इस बात को लेकर भी है कि आखिर सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा होने और उससे जुड़ कार्यक्रमों के लिए बीजेपी को केंद्रीय पर्यवेक्षक की जरूरत क्यों पड़ी। आखिर क्यों दिल्ली से आए नेता बीजापुर गेस्ट हाउस में मैराथन बैठक करने को मजबूर हुए। आखिर क्यों देर शाम मुख्यमंत्री को विधायकों की अलग से बैठक बुलानी पड़ी। बहरहाल अटकलें अभी भी कई हैं और चर्चाओं का बाजार भी गर्म है, अब देखना होगा कि उत्तराखंड की सियासत में मार्च का महीना इस साल क्या गुल खिलाता है और त्रिवेंद्र रावत का राजनीतिक भविष्य किस करवट बैठता है

उत्तराखंड की सियासत में मार्च का महीना एक बार फिर सियासी अटकलों और कयासों का दौर लेकर आया। 6 मार्च को बीजेपी खेमे में दिल्ली से लेकर देहरादून तक अचानक खलबली मच गई। मुख्यमंत्री गैरसैंण में बजट के बाद थोड़ा सा सुस्ता रहे थे इसी बीच सोशल मीडिया और मीडिया में नेतृत्व में बदलाव की खबरें तैराने लगी। इस ख़बर ने बैचेनी उस वक्त और ज्यादा बड़ा दी जब प्रदेश बीजेपी प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह भी अचानक ही देहरादून पहुंच गए और कोर ग्रुप की बैठक बुला ली। बैठक की जानकारी मिलते ही गैरसैंण में मौजूद सत्ता पक्ष और विपक्ष के खेमे में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी। दिल्ली से पहुंचे नेताओं ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी बुलावा भेजा और वो भी आनन फानन में हेलीकॉप्टर के जरिए बैठक में शामिल होने देहरादून पहुंच गए। मुख्यमंत्री के अलावा बीजेपी के कई विधायक भी बारी-बारी देहरादून की उड़ान भरने लगे। इसी अफरातफरी के बीच सरकार ने बजट पास कराया और विधानसभा की कार्यवाही भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले बीजेपी के पांचों लोकसभा सांसदों को बैठक के लिए बुलाया जा चुका था, राज्यसभा सांसद नरेश बंसल भी बैठक में मौजूद रहे।

                                   मुख्यमंत्री पद के कितने दावेदार?



              बैठक शुरू हुई तो मुख्यमंत्री को हटाए जाने की ख़बर और भी तेजी से फैलने लगी, हर किसी की जुबान पर सीएम बदलने की ही चर्चा थी। बीजेपी नेताओं के बीच कई घंटे तक मंथन चलता रहा, इस दौरान सीएम पद के लिए कई चेहरों के नाम भी उत्तराखंड की सियासी फिजाओं में तैरने लगे। हर नेता का समर्थक अपने नेता को ही मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करता नज़र आया। किसी ने अनिल बलूनी को दमदार बताया तो कोई निशंक की पैरवी करने लगा। कई लोगों की जुबान पर प्रदेश महामंत्री सुरेश भट्ट और सासंद अजय भट्ट का नाम भी आया। इसके अलावा ये भी हवा उड़ती रही कि त्रिवेंद्र रावत की पंसद का ही कोई मंत्री अब सीएम की कुर्सी पर काबिज होगा।



                                                          बदलाव की अटकलों पर विराम

                   अटकलों और कयासों के इस दौर के बीच ही त्रिवेंद्र रावत बैठक से बाहर निकल गए इसके बाद कहा गया कि उन्हें दिल्ली तलब कर लिया गया है और किसी भी वत्त नए मुख्यमंत्री की घोषणा हो सकती है। इस ख़बर के बाद राज्य की जनता के बीच भी दिलचस्पी बड़ गई और बीजेपी कार्यकर्ता भी उत्सुकता से पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए रहे। लेकिन देर शाम जब बैठक खत्म हुई तो प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने तमाम अटकलों को खारिज कर दिया। बंशीधर ने दावा किया कि नेतृत्व परिवर्तन जैसी कोई संभावना नहीं है और बैठक सिर्फ सरकार के चार साल के कार्यकाल पूरा होने को लेकर बुलाई गई थी, मदन कौशिक ने भी यही बात दोहराई, अजय भट्ट और दूसरे नेताओं ने भी नेतृत्व में बदलाव की ख़बरों को महज अफवाह करार दिया। यानि सुबह से जो गहमागमही चल रही थी उस पर पार्टी नेताओं ने विराम लगाने की कोशिश की।





                                           बहुगुणा के बयान के क्या मायने?

                  इसके बाद सीएम त्रिवेंद्र रावत ने भी अचानक विधायकों की बैठक बुला ली, जिमसें कई विधायक पहुंचे। सीएम के साथ हुई बैठक को भी सरकार के चार साल के कार्यकाल पूरा होने और उससे जुड़े कार्यक्रमों की तैयारी से जोड़कर देखा गया। बैठकों के इस सिलसिले के बीच ही पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से बीजेपी में गए विजय बहुगुणा ने भी त्रिवेंद्र रावत ने मुलाकात की। सीएम से मिलने के बाद बहुगुणा ने भी फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन की ख़बरों से इनकार किया और विकास को आगे बढ़ाने का दावा करने लगे। लेकिन विजय बहुगुणा के एक जवाब के बाद त्रिवेंद्र रावत के सियासी भविष्य को लेकर कयास और अटकलें लगने लगी हैं। दरअसल विजय बहुगुणा से पूछा गया था कि क्या 2022 का चुनाव त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, इस पर पूर्व सीएम ने पहले तो चुप्पी साथ ली लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि चुनाव में चेहरा नरेंद्र मोदी का रहता है और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का रहता है, ऐसे में त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में चुनाव होगा या नहीं होगा इसका फैसला भी आलाकमान ही करेगा। यानि विजय बहुगुणा ने साफ कर दिया कि त्रिवेंद्र रावत के चेहरे पर या नेतृत्व में चुनाव लड़ने से बीजेपी को कुछ तो परहेज है या एतराज है।





                                         त्रिवेंद्र बच गए या बचाए जा रहे हैं? बरहाल यह तो आनेे वाला पता लग जाएगा की मुख्यमंत्रीी का कि  चुनाव किसकेेे नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा

            
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