(ब्यूरो चीफ प्रकाश चन्द्र जोशी की रिपोर्ट)
काशीपुर, 14 जुलाई। मनुष्य पहिले
जन्म लेता है, फिर बचपन, जवानी और 60 वर्ष की आयु में वृद्ध हो जाता है। ऐसे वृद्ध महिला पुरषों के हितार्थ देश में वरिष्ठ नागरिक अधिनियम लागू किया गया।
भारत सरकार के न्याय एवम सशक्तिकरण मंत्रालय के द्वारा लागू इस अधिनियम का दायरा बढाते हुए वर्ष 2007 में इस अधिनियम का नाम माता-पिता वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण कल्याण अधिनियम 2007 कर दिया गया। अपने बच्चों एवम समाज से उपेक्षित वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाए गए इस अधिनियम को कारगर करने का जिम्मा जनपद स्तर पर जिला प्रशासन एवं समाज कल्याण विभाग को दिया गया। शासन प्रशासन की उपेक्षापूर्ण रवैये एवम अनुश्रवण के अभाव में इस अधिनियम को कारगर करने में जो गति आनी चाहिए थी,अपेक्षाकृत वो नहीं दिखाई पड़ी ।
ऐसा नहीं है कि वृद्ध जनों के हितार्थ लागू किए गए इस अधिनियम के अंतर्गत कोई कार्यवाही नहीं हुई वर्ष 2015-2016 में समाज कल्याण विभाग उत्तराखंड के तत्कालीन निदेशक विष्णु सिंह धानिक के द्वारा इस अधिनियम को कारगर करने के लिए बहुत रुचि ली गई तथा जनपद के जिला समाज कल्याण अधिकारियों को निर्देशित किया। इन निर्देशों के क्रम में उत्तराखंड में सबसे पहिले जनपद चंपावत के टनकपुर क्षेत्र के ग्राम चंदानी निवासी वरिष्ठ नागरिक महिला श्रीमति विजय वजीर को न्याय मिला, जिन्होने अपनी 27 एकड़ जमीन अपनी दोनों पुत्रियों के नाम कर दी थी । जमीन मिलने के बाद पुत्रियों का रवैया अपनी मां के प्रति बदल गया । श्रीमती विजय वजीर ने पुत्रियों के उपेक्षापूर्ण व्यवहार से आहत होकर इस अधिनियम के अंतर्गत न्याय की गुहार लगाई। उनके आवेदन पर त्वरित कार्यवाही करते हुए टनकपुर के तत्कालीन उपजिलाधिकारी नरेश र्दुगापाल एवं तत्कालीन जिला समाज ……
कल्याण अधिकारी पी सी जोशी ने पीड़िता श्रीमती विजय वजीर को उनकी दान में दी गई 27 एकड़ भूमी ऊनकी पुत्रियों से उन्हें वापस दिलाकर पीड़िता को न्याय दिलवाया।
अधिनियम के अंतर्गत परगना स्तर से जनपद और शासन स्तर पर समितियों के गठन का प्रावधान है जो माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं का समाधान एवं अधिनियम में उनके कल्याण के लिए अधिसूचित प्रावधानों से उन्हें लाभान्वित किया जा सकता है ।