लाल कुआं:अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा खतरनाक हैं नए आपराधिक कानून, 👉कानूनों को तत्काल रद्द करने की मांग पर माले का प्रतिवाद@

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लालकुआं: संवाददाता

  • अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा खतरनाक हैं नए आपराधिक कानून
  • भारत को पुलिस राज में बदलने की साजिश, संस्थागत स्थायी आपातकाल का खतरा
  • कानूनों को तत्काल रद्द करने की मांग पर माले का प्रतिवाद
  • कानूनों को संसद में फ़िर से पेश करे सरकार, ताकि इनकी सही जांच-परख हो सके

मोदी सरकार के नए क्रिमिनल कोड के खिलाफ़ प्रतिवाद करते हुए भाकपा-माले की ओर से कानूनों की प्रतियां जलाकर विरोध व्यक्त किया गया।

माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय ने इस अवसर पर कहा कि, नए आपराधिक कानून भारत को एक पुलिस राज्य में बदल देंगे। इसे हम एक संस्थागत स्थायी आपातकाल कह सकते हैं जहां पुलिस के पास मनमानी शक्तियां होंगी और असहमत नागरिकों पर जेल जाने का स्थायी खतरा होगा। नए क्रिमिनल कोड नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों का हनन करने और सरकारी दमन बढ़ाने के औजार मात्र हैं। इन पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। ये कानून अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा खतरनाक हैं।

उन्होंने आगे कहा कि समाज के विभिन्न तबकों और न्याय पसंद नागरिकों के बीच इन तीन नए फौजदारी संहिताओं – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लेकर गम्भीर चिंता हैं। इन तीनों संहिताओं में (जो क्रमशः भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया सहित 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेंगी) मूलभूत नागरिक स्वतंत्रता – जैसे बोलने, हक-अधिकार के लिए आवाज उठाने, प्रदर्शन की स्वतंत्रता और अन्य नागरिक अधिकारों को अपराध की श्रेणी में लाने वाले कठोर कानूनों का प्रावधान है। भूख हड़ताल को भी अपराध बना दिया गया है। जबकि नए नामकरण के साथ कुख्यात राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 124 ए को कायम रखा गया है।

अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष आनंद सिंह नेगी ने कहा कि, नए कानूनों के जरिए पुलिस को अनियंत्रित शक्तियां दे दी गई हैं जिनका देश में नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। नागरिक सुरक्षा संहिता कानून के तहत अब जनता के सवालों को लेकर सरकार के खिलाफ आवाज उठाना भी जुर्म हो गया है। ये प्रावधान जनता के अधिकार और किसी व्यक्ति की मानवीय गरिमा के हनन के अलावा कुछ नहीं है। ये कानून पुलिस द्वारा नागरिकों को निशाना बनाए जाने को आसान करता है।

उन्होंने कहा कि, सबसे गंभीर यह है कि पुलिस अभिरक्षा की अवधि को वर्तमान 15 दिन से बढ़ाकर 60 या 90 दिन कर दिया गया है। किसी गिरफ्तार आरोपी का नाम, पता और अपराध की प्रवृत्ति का पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय पर भौतिक एवं डिजिटल प्रदर्शन किया जाएगा। इसका मतलब है भाजपा सरकार जनता की आवाज को खामोश करने के लिए दमन और तेज करना चाहती है।

नेताओं ने कहा कि फौजदारी मामलों में पहले से ही पूरे भारत में 4 करोड़ मुकदमे लंबित हैं. उसके बीच में इन तीन कानूनों को लागू करना दो समानांतर कानूनी व्यवस्थाएं उत्पन्न करेगा, जिससे बैकलॉग और बढ़ेगा तथा पहले से अत्यधिक बोझ झेल रहे हमारे न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के न्याय ढांचे को सुधार की अधिक जरूरत है लेकिन तीन फौजदारी कानून इसका जवाब नहीं है। ये अकारण ही हड़बड़ी में बिना चर्चा या संसदीय परख के ऐसे समय में पास किए गए जब 146 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था।

भाकपा माले ने मांग की कि, केंद्र सरकार इन तीन फौजदारी कानून को लागू करने का निर्णय स्थगित करे और उन्हें संसद में फ़िर से पेश करे ताकि इनकी सही जांच-परख हो सके और इन पर चर्चा हो सके। माले ने राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करते हुए इन कानूनों को रद्द करने की मांग भी की।

प्रतिरोध में डा कैलाश पाण्डेय, आनंद सिंह नेगी, ललित मटियाली, विमला रौथाण, पुष्कर दुबड़िया, निर्मला शाही, कमल जोशी, धीरज, अजय, आयशा आदि शामिल रहे।

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