रुद्रपुर : शहीद ऊधम सिंह का जन्म दिवस जनपद में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिला कार्यालय में जनपद प्रभारी एवम ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी, जिलाधिकारी उदयराज सिंह, मुख्य विकास अधिकारी विशाल मिश्रा, पूर्व विधायक राजेश शुक्ला सहित विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन किया।

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रुद्रपुर 26 दिसम्बर विशेष संवाददाता– शहीद ऊधम सिंह का जन्म दिवस जनपद में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिला कार्यालय में जनपद प्रभारी एवम ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी, जिलाधिकारी उदयराज सिंह, मुख्य विकास अधिकारी विशाल मिश्रा, पूर्व विधायक राजेश शुक्ला सहित विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन किया।
इस अवसर पर सभी महानुभावों ने देश के युवाओं से शहीद ऊधम सिंह के आदर्शों एवम मूल्य को आत्मसात करने को कहा। सभी ने शहीद ऊधम सिंह के जीवन के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि राँझा के भागी हीर लिखी, साढी किस्मत विच जंजीर लिखी। इस गीत की पंक्तियां गुनगुनाने वाले अमर शहीद उधम सिंह काम्बोज का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के प्रसिद्ध कस्बे सुनान में सरदार टहल सिंह के घर हुआ था। जब इनकी आयु चार वर्ष की थी तो उनकी माता नारायणी कौर का निधन हो गया और इसके तीन वर्ष बाद इनके पिता भी गुजर गये। मां-बाप का साया उठने से इनकी सारी जिम्मेदारी बड़े भाई पर आ गई। दोनों भाइयों का पालन पोषण एक अनाथ आश्रम में हुआ। आश्रम के मैनेजर एवं उसकी पत्नी ने न केवल इनका पालन पोषण किया बल्कि अच्छी शिक्षा एवं संस्कार भी दिये। उधम सिंह का पहला नाम शेर सिंह था और फिर यह सिक्ख मर्यादा में अमृतपान कर उधम सिंह बने। 18 वर्ष की उम्र होते ही इनके इकलौते भाई का भी निधन हो गया। 1917 में खालसा स्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, फिर नौकरी की तलाश में वह इधर उधर भटकते रहे। इसी दौरान रोलेट एक्त के विरोध में महात्मा गांधी के आह्वान पर सत्याग्रह की घोषणा कर दी। मार्च 1919 में पंजाब में भारी आक्रोश फैल गया। जिसके चलते अमृतसर में डा० सैफुउद्दीन किचलू व डा० सतपाल पर अंग्रेज अफसरों ने उनके भाषणों को प्रतिबन्ध लगा दिया। अप्रैल 9 को अमृतसर में टामन बमी का त्यौहार मुस्लिम, सिक्ख, हिन्दू एकता के रूप में मनाया गया। इससे खफा पंजाब सरकार ने उनके निष्कासन करने का आदेश जारी कर दिया। आदेश के विरोध में 10 अप्रैल 1919 को जनता जुलूस की शक्ल में डीसी कोठी पर बढ़ रही थी कि सैनिकों ने गोलियां चला दी जिसमें काफी लोग मारे गये। अंग्रेजों ने सतपाल एवं डा० किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया, इसके विरोध में वैशाखी के अवसर पर जलियांवाला बाग में जनसभा हुई। ब्रिटिश सरकार के लैफ्टीनेंट गवर्नर ब्रिगेडियर ओडवायर ने वहां मौजूद लोगों पर गोलियां चलवा दी जिससे बड़ी संख्या में निर्दोष लोग मारे गये। इस गोली कांड में एक गोली बालक उधम सिंह के बाजू में भी लगी। उन्होंने लाशों के बीच छिपकर अपनी किसी तरह जान बचायी। इस वीभत्स नरसंहार को देखकर उधम सिंह का बाल हृदय दहल उठा और उनकी आंखों में आंसू आ गये। इस काण्ड से दुखित उधम सिंह स्वर्ण मंदिर गये और पवित्र सरोवर में स्नान कर जनरल ओडवायर से बदला लेने की प्रतिज्ञा की।

समय तेजी से आगे बढ़ता गया और बालक उधम सिंह भी बड़े होने लगे इसके साथ ही उनके द्वारा बचपन में ली गई कसम और मजबूत होती गई देश में चारों ओर अंग्रेजी हुकूमत को हटाने के लिये आन्दोलन चल रहे थे। महात्मा गांधी सत्याग्रह आन्दोलन के द्वारा शहीद भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर, सुभाष चन्द्र बोस क्रान्तिकारी तरीके से देश को आजाद कराने के लिये प्रयत्नशील थे। वहीं उधम सिंह ओडवायर से जलियांवाला बाग काण्ड के नरसंहार का बदला लेने की रणनीति बना रहे थे। ज्यो-ज्यो उधम सिंह बडे होते गये उनकी प्रतिज्ञा अटूट होती गई। उधम सिंह का कहना था कि ब्रिटिश सरकार ने निर्दोष जनता का नरसंहार किया, साथ ही राष्ट्रीय गौरव को भी अपमानित किया। बदला लेने के लिये वह गदर पार्टी में शामिल हुये। रिपब्लिक आर्मी के सम्पर्क में रह कर उन्होने क्रान्तिकारियों को गोला बारूद मुहैया कराया। 19 अक्टूबर 1937 को आर्मी एक्ट के तहत उन्हें पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुयी। अपना भेष व नाम बदलते हुये वह समुद्री यात्रा के द्वारा बदला लेने के लिये इंग्लैण्ड जा पहुंचे। 13 मार्च 1940 को लन्दन के कैंगस्टन हाल में किसी तरह उधम सिंह प्रवेश कर गये। उन्होने किताब के बीच में रिवाल्वर छिपा रखा था। इस हाल में अंग्रेजों के राजनैतिक सम्मेलन की सभा चल रही थी जिसकी समाप्ति से कुछ समय पूर्व खचाखच भरे हॉल में ऊधम सिंह ने बालकनी से जलियांवाला बाग के दोषी जनरल ओडवायर पर अन्धाधुन्ध गोलियां चला दीं। जिससे ओडवायर की मौके पर ही मृत्यु हो गई। इस घटनाक्रम से पूरी ब्रिटिश हुकुमत स्तब्ध रह गई और ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें मौके पर ही गिरफ्तार कर लन्दन की पेटन जेल में भेज दिया जहां 31 जुलाई 1940 को उन्हे फांसी पर लटका दिया गया।

शहीद उधम सिंह की अस्थियां भी ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को नहीं दी। समय व्यतीत होता गया और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्र भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व० ज्ञानी जैल सिंह जो कि पंजाब के मुख्यमंत्री थे ने 19 जुलाई 1974 को इग्लैण्ड जाकर उधम सिंह की अस्थियां प्राप्त की। इन अस्थियों को लेकर वह पंजाब आये और शहीद उधम सिंह की अंतिम इच्छा के अनुसार ज्ञानी जैल सिंह ने 31 जुलाई 1974 को उधम सिंह की अस्थियों का अंतिम संस्कार कर उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस प्रकार शहीद उधम सिंह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के पन्नों में समाहित होकर अमर हो गये। विगत 29 सितम्बर 1995 को शहीद उधम सिंह के नाम पर जनपद उधम सिंह नगर सृजन किया गया। शहीद के सपनों के अनुसार भारत का यह नवसृजित जनपद विकास की ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है।

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