खटीमा (दीपक यादव की रिपोर्ट ) मामला मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र खटीमा से है जहां इन दिनों जमीन के विवाद के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं आपको बता दें कि 60 साल पहले बेची गई जमीन पर दो पक्षों में हो रहा विवाद एक पक्ष का कहना है कि यह जमीन हमारे दादा द्वारा 60 साल पहले खरीदी गई थी और हम इस पर 60 सालों से काबिज हैं दूसरे पक्ष का कहना है कि यह जमीन हमारी है और खसरा खतौनी में भी हमारे नाम है आपको बता दें कि खटीमा विकासखंड जो कि थारू जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है और इस क्षेत्र में अधिकतम जमीने थारू जनजाति के लोगों के नाम पर दर्ज हैं लेकिन वर्तमान समय पर पहाड़ से आए हुए लोगों द्वारा खरीद कर उन पर अपना रहबरसर खेती बाड़ी की जा रही है इसी क्रम में एक पक्ष पहाड़ी समुदाय से है उनका कहना है कि यह जमीन हमारे दादा द्वारा 60 साल पहले खरीदी गई थी और इस जमीन पर तब से हमारा कब है लेकिन आज 60 साल बाद जिनसे हमने जमीन खरीदी थी उनके बेटे द्वारा आज खसरा खतौनी दिखाकर हमारी जमीन पर हक जताया जा रहा है जोकि मामला न्यायालय में विचाराधीन चल रहा है । इसी पर उप जिला अधिकारी खटीमा रविंद्र बिष्ट द्वारा मीडिया से रूबरू होते बताया कि अनुसूचित जनजाति की जमीन किसी भी अन्य जाति के नाम पर नहीं होती है और ना ही कोई भी अन्य जाति का व्यक्ति उसे खरीद सकता है और खसरा खतौनी में भी जमीन थारू जनजाति के व्यक्ति के नाम है और इसीलिए इस जमीन पर थारू जनजाति का जो व्यक्ति है उसका मूलभूत अधिकार है यह कहते हुए जमीन मैं थारू जनजाति समुदाय के व्यक्ति का हक है लेकिन पीड़ित पक्ष का कहना है कि यह जमीन हमारे दादा द्वारा 60 साल पहले खरीदी गई थी और हमारे साथ कहीं ना कहीं अन्याय किया जा रहा है अगर इसी प्रकार से थारू जनजाति के व्यक्तियों द्वारा अगर अपनी जमीनों के खसरा खतौनी के आधार पर जमीनों पर अधिकार जताया जाने लगा तो कहीं ना कहीं जिन लोगों ने भी थारू जनजाति के लोगों से जमीनें खरीदी हैं उन लोगों को आज अपनी अपनी जमीनों का भय बना हुआ है क्योंकि कब्जे में जमीने अन्य लोगों के हैं …..
जिन लोगों ने जमीनी थारू समाज से खरीदी हैं लेकिन दस्तावेज में जमीने थारू जनजाति के लोगों के नाम पर हैं अगर इसी प्रकार के विवाद होते रहे तो कई लोग के घरों से बेघर होने की संभावना है।