अशोक गुलाटी editor-in-chief की विशेष रिपोर्ट
आखिरकार कई दिनों से चली आ रही चर्चा को आज विराम मिल गया महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस्तीफ़ा दे दिया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर कर लिया है.
अब उनकी जगह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को वहां का राज्यपाल बनाया गया है आज हुए इस्तीफे मंजूर के बाद अचानक देहरादून में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है राजनीतिक जानकारों का कहना है कि क्या भगत दा सन्यास लेंगे यह दूसरी पारी की तैयारी करेंगेl राजनीतिक पंडित दावा कर रहे हैं कि भगत दा दूसरी पारी उत्तराखंड में शुरुआत करेंगे क्योंकि आगामी होने वाले लोकसभा के चुनाव को देखते हुए शिष्य को ड्रॉप करेंगे और खुद बैटमैन के रूप में ओपनिंग की दोबारा शुरुआत करेंगे? राजनीतिक जन चर्चा के मुताबिक
राज्यपाल रहते जब भी उत्तराखंड आए तो रहे खासे सक्रिय भूमिका में रहे अब क्या भगत द
शिष्य के संकटमोचक या सरदर्द साबित होंगे यह जबरदस्त चर्चा चल रही हैl भगत दा के समर्थकों की जबरदस्त
लॉबी है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भगत दा हर व्यक्ति को अच्छी तरह से जानते वह पहचानते हैं l गौरतलब है कि काफी समय से इस्तीफे की चर्चा चल रही थी आखिरकार आज भगतदा के महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा आखिरकार मंजूर हो ही गया। भगतदा लौटकर उत्तराखंड ही आएंगे। ऐसे में उनकी भावी भूमिका को लेकर तमाम सवालात सियासी फिजाओं में तैरने लगे हैं। सवाल यह है कि वे क्या वास्तव में सक्रिय सियासत को अलविदा कहेंगे या फिर पहले की तरह ही सक्रिय रहकर भाजपा का एक :पावरफुल” बनेंगे। ध्यान देने की बात यह है कि भगत दा की हाई कमांड में जबरदस्त पकड़ है जब सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हारे थे उनको दोबारा सीएम की कुर्सी पर बैठाने के लिए भगत दा की भूमिका रही थीl अब प्रश्न उठता है कि
इस्तीफा मंजूर होने के बाद भगतदा निश्चित रूप से लौटकर अपने गृह राज्य उत्तराखंड ही आएंगे। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भगतदा क्या सक्रिया सियासत को बॉय-बॉय कर देंगे या फिर पहले ही तरह ही अपनी सक्रियता बनाए रखेंगे। गौर करने की बात यह है कि राज्यपाल रहते हुए भगतदा जब भी देहरादून आए तो खासे सक्रिय रहे। उनके आवास पर प्रदेशभऱ से आने वालों की भीड़ सी लगती रही है। इतना ही नहीं, भगतदा खुद भी तमाम प्रोटकॉल तोड़कर सियासी लोगों से मिलने उनके घर तक जाते रहे हैं।
प्रदेश में भगतदा का भाजपा में अब तक अपना एक कद रहा है। सियासी शिष्य पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके आवास पर मिलने आने वालों की संख्या और भी बढ़ गई थी। हर किसी को यही उम्मीद रहती थी कि अगर भगतदा एक बार सीएम धामी को फोन करके सिफारिश कर देंगे तो उनका काम हो जाएगा।
एक बात तो तय है कि अगर भगतदा उत्तराखंड आकर सियासी तौर पर सक्रिय रहते हैं तो उनका प्रदेश भाजपा में एक पॉवर सेंटर बनना तय है। अगर वे सक्रिय रहते हैं तो यह भी देखने वाली बात होगी कि वे अपने शिष्य मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए किस तरह की भूमिका में काम करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सीएम धामी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही पूरे भाजपा हाईकमान का आशीर्वाद है। ऐसे में कोई धामी के लिए किसी तरह की सियासी परेशानी खड़ी कर सकता है, इसकी संभावनाएं न के बराबर ही हैं। फिर भी भगतदा अगर भाजपा का पॉवर सेंटर बनने की कोशिश करते हैं तो हालत असहज से बन सकते हैं। आज अचानक हुए राजनीतिक घटनाक्रम में इस्तीफे के बाद सरगर्मी तेज हो गई है l स्मरणीय है कि राज्य की पांचों लोकसभा सीट भाजपा के पास हैं। फिर से इन सीटों को भाजपा की झोली में डालने के लिए भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड में नया मोड़ ला सकते हैं।महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से पदच्युत होकर भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की सियासत में सक्रिय हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक भगत सिंह कोश्यारी…..
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उत्तराखंड की सियासत में सक्रिय हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय होकर भाजपा के लिए 2024 का चुनाव जीतने की पहल कर सकते हैं। बरहाल राजनीतिक पंडितों का दावा है कि होली के आसपास भगत दा दूसरी पारी की शुरुआत कर सकते हैं यह तो भविष्य के गर्भ में है कि आने वाला समय राजनीतिक किस तरफ करवट बदलेगा पूरे उत्तराखंड वासियों की निगाहें टिकी हुई हैl