इधर खाई उधर कुआ आम नागरिक जाए तो जाए कहा
@ गिरीश चन्दोला @
हल्द्वानी। कोरोना की दूसरी लहर प्रदेश में तांडव मचा रही है l कोरोना संकटकाल में कई परिवारो के घरों में मातम छाया हुआ है। किसी ने अपना लाडला खोया है तो किसी ने पित्रो की छाव खो दी है। कही तो परिवार के परिवार ही खतम हो गये है। चारों तरफ मरघट का सन्नाटा कोरोना की भयावहता को दर्शा रहा है चारों तरफ मची चीख पुकार के बीच प्रदेश में ना तो सरकार नजर आ रही है और ना ही लोकतंत्र का मजबूत आधार कहे जाने वाला विपक्ष ही अपनी भूमिका निभाते नजर आ रहा है। इन हालात में आमजन गुहार लगाए भी तो कहां लगाए। अब कोरोना संक्रमित का बढ़ता आंकड़ा व उससे होने वाली मौतें डराने लगी है। ऐसे में प्रशन उठता लाजमी है कि आखिर कोरोना संकटकाल के दौरान सरकार क्या कर रही है?इतना ही नही विपक्ष की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे है कि आखिर कोरोना संकटकाल में विपक्ष मित्र विपक्ष की भूमिका में ही क्यों नजर आ रहा है? राज्य का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व उसके नेता जो कल तक राज्य की जनता के हितैषी होने का दम भरते थे आज सिरे से गायब है । करुण रुदन से भरे इस माहौल में आज उन्हें क्यों नही जनता का दुख दर्द सुनाई देता है। क्यों नहीं विपक्ष अपनी दमदार भूमिका निभाते नजर आता है सवाल कई हैं जिनका उत्तर जनता जानना चाहती है । ऐसा ना हो कि मित्र विपक्ष की भूमिका निभाते निभाते इतनी देर हो जाए कि जनता अगली बार उसे विपक्ष में बैठने का भी मौका ना दें । हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उसके लिए सबक है। कुल मिलाकर कोरोना काल के इस संकट में राजनैतिक दलो ने आम जनमानस को उसके हाल पर छोड़ दिया। यदि आज गरीब व्यक्ति कोरोना से बच भी जाय पर कही ना कहीं भूख उसे जीने नहीं देगी। रोजमर्रा की जिन्दगी में रोज कमाकर खाने वालो का हाल बेहाल है। वे अगर घर से काम पर ना जाये तो परिवार का भूख से मरने का डर। काम से घर आए तो परिवार को कोरोना का डर। गलती से भी काम पर गए परिवार के इस व्यक्ति को कोरोना हो गया तो पूरा घर परिवार ही तबाह। इस समय तो कोरोना कब कहाँ से आपके शरीर में प्रवेश कर जाएगा कोई बया नहीं कर सकता। ऐसे में परिवार के एक सदस्य की कमाई पर टीकि परिवार का सदस्य घर पर ही ठहर जाए तो परिवार कोरोना से मरे या नहीं पर भूख से परिवार नष्ट होने की सम्भावनाएं ज्यादा है। और काम पर जाकर कोरोना की चपेट में आया तो भी मजदूर का परिवार तबाह हो ही जाना है। इधर खाई उधर कुआ अब आम आदमी जाए तो जाए कहाँ। ना ही सरकार कुछ कर रही है और ना ही विपक्षी दल कुछ कर पा रहे है। हर रोज यहा हजारों की संख्या में मौत जरूर हो रही है। ऐसा ही चलता रहा तो वो समय भी दूर नहीं जब नेताजी तस्वीर में ही नजर आएगे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कहीं आम आदमी हिंसक बनकर तबाही का रूख ना अपना ले। वास्तविकता में यह समय है व्यवस्थाओ को दूरस्थ करने का, समय है जनसेवा की भावना का, समय है पक्ष-विपक्ष की भूमिका को छोड़कर जनसेवा का।