रुद्रपुर/देहरादून। (अशोक गुलाटी एडिटर इन चीफ)। राज्य बनने के बाद कभी कल्पना भी नहीं की थी कि देवभूमि की उत्तराखंड भ्रष्टाचारियों की जननी बन जाएगी रोज भ्रष्टाचार के हैरतअंगेज कारनामे सामने आ रहे हैं आपको आज हम आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी उत्तराखंड देहरादून की सनसनीखेज खबर बताने जा रहे हैं कि आप दांतो तले उंगली दबा लेंगे कैसे रुद्रपुर (उधम सिंह नगर ) स्कूल के एक प्राइमरी पी टी टीचर कुछ पद पर पहुंच गया भ्रष्टाचारियों ने भ्रष्टाचार की सभी हदें पार करते हुए एक मामूली टीचर को उच्च पद पर पहुंचा दिया गया गौरतलब है कि पिछले दिनों देवभूमि माया न्यूज़ पोर्टल चैनल ने इस खबर का धमाका किया था तो हड़कंप मच गया था और इसकी उच्च स्तरीय जांच बिठाई गई थी और कहा गया था कि जांच 1 सप्ताह में पूरी हो जाएगी परंतु 2 माह से भी अधिक हो चुके हैं जांच दो कदम ही आगे बढ़ी है यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ सुनील कुमार जोशी एवं रजिस्टर डॉ राजेश से जब हमने वार्ता की दोनों अधिकारियों के विरोधाभास बयान थे। हालांकि रजिस्ट्रार ने सफाई देते हुए कहा है कि एक सप्ताह में जांच पूरी हो जाएगी आखिर क्यों विलंब हुआ उन्होंने विभिन्न तर्क दिए वह हम आपको आगे बताएंगे। गौरतलब है कि
इस पूरे प्रकरण की शुरुआत उत्तराखंड उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय देहरादून की स्थापना 2010 में हुई थी; इसके लिए सहायक कुलसचिव की आवश्यकता थी; जिसको शिक्षा विभाग ने लिए उधम सिंह नगर के मुख्यालय रुद्रपुर में पीटी टीचर कार्यरत संजीव कुमार पांडे को 1 साल के लिए डेपुटेशन
गया। विश्वविद्यालय में श्री पांडे का इस कदर दबदबा हो गया उससे कर्मचारी अधिकारी भी डरने लगे; क्योंकि भ्रष्ट निलंबित रजिस्टर का आंखों का तारा श्री पांडे बन चुका था वह हर मनमाने काम करने शुरू कर दिए थे। स्मरणीय है कि सहायक कुलसचिव पद पर सीधी शासन द्वारा विज्ञापन निकालकर भर्ती निकाली जाती है जिसमें केवल आयुर्वेदिक पीएचडी डॉक्टर ही इस पद के लिए योग से होते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि श्री पांडे पीटी टीचर हैं। जबकि इसका मूल विभाग स्कूल शिक्षा विभाग है । जबकि यह सामूहिक ग के श्रेणी में आते हैं; श्री पांडे को सभी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए राजपत्रित अधिकारी अधिकारी बना दिया गया। इधर दूसरी और रुद्रपुर के जागरूक नागरिक सीपी गंगवार ने मुख्य सचिव को एक शिकायती पत्र एफिडेविट के साथ प्रेषित किया था और इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। प्रमुख सचिव आयुष देहरादून ने इस मामले को गंभीरता से देखते हुए आयुष एवं विभाग को जांच के आदेश दिए थ।
उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार कुलपति चीख चीख कर कह रहा है कि भ्रष्टाचार हुआ है भ्रष्टाचार हुआ है; परंतु इसकी कोई सुनने वाला नहीं है जब की देवभूमि माया न्यूज़ पोर्टल ने चैनल सनसनीखेज खबर का खुलासा किया; तो विजिलेंस की टीम आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय देहरादून में डिप्टी रजिस्ट्रार संजीव कुमार पांडे उनसे पूछा की गया कि आप डॉक्टर है या नहीं ? उनके सवाल से वह भौचक्का रह गया परंतु वह सवाल का जवाब देने में असमर्थ रहे ; । सूत्रों के मुताबिक के हर सवाल का जवाब गोलमोल देते रहे। सूत्रों का यहां तक कहना है कि विजिलेंस की टीम ने जब उनसे पूछा आखिर आप अपने आखिर वह अपने मूल विभाग मे क्यों नहीं गए बिना अनुमति के कैसे इतने साल तक यहां जमे रहे सूत्रों के मुताबिक हर सवाल जवाब पर वह खामोश रहे; सूत्रों के मुताबिक श्री पांडे ने कई बार पानी मंगाकर पिया हर सवालों के जवाब से बचते रहे बाहर टीम उनकी बातों से संतोष नहीं थी; तत्पश्चात विजिलेंस की टीम ने कुलपति सहित अन्य अधिकारियों से भी पूछताछ की परंतु वह संतुष्ट नहीं हुए। गौरतलब है कि कि हमने आपको पिछले अंक में बताया था कि मां-बाप का एक सपना होता है कि उनका बेटा बड़ा होकर आईएएस आईपीएस इंजीनियर बड़े पदों पर बने इसके लिए वह सब कुछ निछावर कर देते हैं हर युवाओं का भी सपना होता है बड़ा होकर आईएएस आईपीएस बने और देश और मां बाप का नाम रोशन करूं। इसके लिए रात दिन तैयारी करते हैं और कंपटीशन में बैठते हैं लाखों युवा पेपर देते हैं उसमें कुछ भी युवा पास हो पाते हैं। परंतु यहां तो सब उल्टा पुल्टा हो गया ना पढ़ाई ना कंपटीशन एक रुद्रपुर में एक जूनियर स्कूल में पीटी टीचर ने आयुर्वेदिक विद्यालय देहरादून बर्खास्त बहुत चर्चित भ्रष्टाचार की इमारत लिखने वाले पूर्व रजिस्टार मृत्युंजय कुमार मिश्रा अभी हाल में ही ढाई साल जेल में रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट जमानत पर छूटे हैं; उसके खिलाफ अभी भी विजिलेंस एवं उच्च स्तरीय जांच चल रही है; श्री मिश्रा ने पीटी टीचर संजीव कुमार पांडे के साथ साथ सांठगांठ कर इस तरह का खेला खेला कि भ्रष्टाचार को भी मात दे दी और उन्होंने कुछ ही सालों में सर्वश्री अपने दुलारे प्यारे आंखों के तारे और भ्रष्टाचार खेल के साथी संजीव कुमार कुमार पांडे को कुछ ही महीनों में आईएएस के वेतनमान के बराबर पहुंचा दिया । इस खेला से आयुर्वेद यूनिवर्सिटी के अफसर दंग रह गए। हैरतअंगेज बात यह थी कि विभाग के कुलपति ने इस नियुक्ति पर घोर आपत्ति की थी परंतु इस सभी को दरकिनार करते हुए सचिव ने इनकी प्रमोशन की नियुक्ति पत्र हस्ताक्षर कर दिए। यह हैरतअंगेज कारनामा उत्तराखंड सरकार का है; जबकि यह आयुष विभाग देहरादून स्वयं युवा तेजतर्रार ईमानदार भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का संकल्प लेकर पुष्कर सिंह धामी रात दिन एक करें हुए हैं। वही नौकरशाही किस क़दर खेला रहे हैं स्मरणीय है कि सहायक कुलसचिव पद पर सीधी शासन द्वारा विज्ञापन निकालकर भर्ती निकाली जाती है जिसमें केवल आयुर्वेदिक पीएचडी डॉक्टर ही इस पद के लिए योग से होते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि श्री पांडे पीटी टीचर हैं। जबकि इसका मूल विभाग स्कूल शिक्षा विभाग है । जबकि यह सामूहिक ग के श्रेणी में आते हैं; श्री पांडे को सभी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए राजपत्रित अधिकारी अधिकारी बना दिया गया। इधर दूसरी और रुद्रपुर के जागरूक नागरिक सीपी गंगवार ने मुख्य सचिव को एक शिकायती पत्र एफिडेविट के साथ प्रेषित किया था और इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। प्रमुख सचिव आयुष देहरादून ने इस मामले को गंभीरता से देखते हुए आयुष एवं विभाग को जांच के आदेश दिए थे इधर श्री पांडे का इस क़दर
दबदबा था कि जांच को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हमने आपको( पार्ट 3) में बताया था। इस नियुक्ति के खिलाफ देश के विख्यात एवं मरम के विशेषज्ञ चिकित्सक प्रोफेसर डॉक्टर कुलपति सुनील कुमार जोशी ने पत्रांक 137 ; 21 -4 2022 को सचिव आयुष एवं आयुष शिक्षा अनुभाग उत्तराखंड शासन उत्तराखंड शासन को पत्र भेजकर पांडे की नियुक्ति पर आपत्ति की थी; परंतु इसके बाद भी शासन ने इसको गंभीरता से नहीं लिया; और इनके पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। गौर करने की बात यह है कि यदि आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय ने पद हेतु समाचार पत्रों में रिक्त पद के लिए प्रकाशित करते जिससे हजारों पीएचडी करे हुए आयुर्वेदिक डॉक्टर बेरोजगार बैठे हुए हैं जबकि आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में केवल आयुर्वेदिक डॉक्टर की ही नियुक्ति हो सकती है। आश्चर्य की बात यह है कि कुलपति ने भारत सरकार को पत्र लिखा है गाजीपुर एक होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज से बर्खास्त एक प्रोफेसर राकेश कुमार मिश्रा आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की गोपनीय ढंग से पत्र लेकर व्हाट्सएप फेसबुक सोशल मीडिया में डाल रहा है इससे विश्वविद्यालय की बदनामी हो रही है और इसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है; क्योंकि इसका मुख्य कारण विवादित सहायक डिप्टी रजिस्ट्रार संजीव कुमार पांडे का रिश्तेदार होना है। जोकि पांडे का रिश्तेदार है इसके कारनामे के चलते गाजीपुर कॉलेज से बर्खास्त कर दिया गया था । वर्तमान में राजकोट (गुजरात) एक निजी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में कार्यरत है। वह पांडे को बचाने के लिए विभिन्न विभिन्न तरह के हथकंडे अपना रहा है । जिससे विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हो रही है। सूत्रों के अनुसार ध्यान देने की बात यह है कि इमानदार कुलपति व रजिस्ट्रार की बदनामी करने के लिए वह हर तरह के हथकंडे अपना रहा है। जिससे कि उनकी ईमानदारी की छवि पर बट्टा लगे ; उनसे समझौता करें ?दूसरी हो देवभमि माया न्यूज़ पोर्टल चैनल लगातार खबर को प्रमुखता से छापने के कारण विजिलेंस टीम ने 2 घंटे तक संजीव कुमार पांडे से पूछताछ की है वह सवालों का जवाब नहीं दे पाए; सूत्रों के मुताबिक विजिलेंस की टीम इससे संतुष्ट नहीं थी; ध्यान देने की बात यह है कि वर्तमान के कुलपति एवं रजिस्टर चीख चीख कर शासन को पत्र भेज रहे हैं कि पांडे की नियुक्ति गलत हुई है और इसमें भ्रष्टाचार का खेल हुआ है ; इसके बाद भी शासन बचाने में जुटा हुआ है। जिससे सरकार की लोकप्रियता पर निसंदेह बट्टा लग रहा है। जबकि यह आयुष विभाग युवा ईमानदार लोकप्रिय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास है जो जीरो टोलरेंस की बात जोर शोर से उठा रहे हैं । जागरूक नागरिकों का कहना था कि इस तरह सरकार की लोकप्रियता को बट्टा लग रहा है शीघ्र कार्रवाई होनी चाहिए।… अभी तो धमाकेदार खेला बाकी है अगले अंक में:-कैसे आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी की दीवारों भी चीख चीख कर भ्रष्टाचार की दास्तान बता रही है । ध्यान की बात यह है कि…

सहायक कुलसचिव पद राज्य सरकार के नियमावली में जब प्रतिनियुक्ति व समायोजन का नियम नहीं था तब तो विश्वविद्यालय की परिनियमावली से प्रतिनियुक्ति वो भी सीधे एक व्यक्ति को बुलाकर दे दी गई और फिर बाद में समायोजन भी कर दिया गया । अजीब बात है । और जब पदोन्नति का समय आया तो फिर राज्य सरकार का नियम बताकर/लगाकर उपकुलसचिव के लिए पदोन्नति की कार्यवाही कर दी गई । मा उच्च न्यायालय को भी शासन में व विश्वविद्यालय में बैठे कुछ इसके हितैषियों व मित्रों द्वारा तत्सम पुनः विश्वविद्यालय की परिनियमावली में संशोधन करवा दिया गया । जबकि ऐसा होना भी नहीं चाहिए था । फिर उल्टा खेल शुरू हुआ और जैसा कि स्थायी सहायक कुलसचिवों में से उपकुलसचिव पद पर पदोन्नति होनी चाइये थी परन्तु केन्द्रीय राज्य परिनियमावली 2006 के अनुसार अन्य विश्वविद्यालय से भी सहायक कुलसचिव को इसमें शासन को शमिल करना चाहिए था, वरिष्ठता क्रम बनता फिर इस उपकुलसचिव पद पर योग्य की पदोन्नति होती परन्तु शासन द्वारा जानबूझकर यह खेल खेला गया और अन्य किसी अभ्यर्थियों को शामिल ही नहीं किया गया । केवल आयुर्वेद विश्वविद्यालय में गलत प्रतिनियुक्ति व गलत समायोजन वाले सहायक कुलसचिव जो मूलतः विद्यालयी शिक्षा विभाग का एक मास्टर था । उसी को पुनः उपकुलसचिव पद पर पदोन्नति कर दी गई जबकि कुलपति द्वारा सचिव, आयुष को संबोधित अपने पत्र में स्पष्ट उक्त बातों का उल्लेख किया गया था । अंधेरगर्दी मचा रखी है सचिवालय में बैठे लाल फीताशाही ने और ये अपने अनुसार कार्य कराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं । आयुर्वेद विश्वविद्यालय का यह प्रकरण इस बात की और अधिक पुष्टि करता है । क्या संजीव पांडेय स्थाई रुप से नियुक्त सहायक कुलसचिव था अथवा नहीं उपरोक्त नियम से तो स्पष्ट होता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए । परन्तु ये लाल फीताशाही और कुछ मृत्यंजय मिश्रा और संजीव पांडेय जैसे गठजोड़ कुछ भी करवा सकते हैं ये तो उत्तराखंड में तय बात है । भले उत्तराखंड के रहने वाले एक एक नौकरी को तरशते रहें और मुख्यमंत्री जी जीरो करप्शन की बात करते रहें । इस संदर्भ में देवभूमि माया न्यूज़ पोर्टल चैनल editor-in-chief अशोक गुलाटी ने रजिस्टार से संपर्क किया तो उनका कहना था कि 3 सदस्य जांच कमेटी बैठाई थी इसमें प्रोफेसर पंकज कुमार; प्रोफ़ेसर