बिग ब्रेकिंग: देहरादून:आत्म साक्षी इस कंपनी का सर्वे हुआ है हमेशा सटीक! यूपी और उत्तराखंड के लिए ये कहता है एग्जिट पोल:-दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला तो राजपाल के पाले में होगी गेंद ? विशेष रिपोर्ट

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(अशोक गुलाटी एडिटर इन चीफ)। विधानसभा के चुनाव की गिनती में कुछ ही घंटे बाकी हैं उसके बाद सभी कंपनियों का सर्वे न्यूज़ चैनलों का सर्वे एक तरफा हो जाएगा; और किसका सर्वे स्टिक बैठता है यह महत्वपूर्ण बात होगी; परंतु एक आतम साक्षी सर्वे कंपनी है उसने विगत वर्षों में पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में किया था जो हंड्रेड परसेंट स्टिक बैठा था इस बार इस कंपनी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सर्वे किया है क्या कहते हैं सर्वे यह आप देखें तमाम सर्वे और न्यूज़ चैनल ने अपने अपने आधार पर और जमीनी हकीकत देख कर तमाम राज्यों में एग्जिट पोल किया है उत्तराखंड में भी लगभग सभी एग्जिट पोल यह बता रहे हैं कि राज्य में एक बार फिर से बीजेपी की सरकार आ सकती है लेकिन पश्चिम बंगाल और कई चुनावों में सटीक सर्वे करके चर्चाओं में रही आत्म साक्षी सर्वे कंपनी ने ना केवल उत्तर प्रदेश बल्कि उत्तराखंड में भी बड़े उलटफेर की आशंका जाहिर की है अपने अनुभव और सभी को देखकर यह साफ है कि आत्मशक्ति का सर्वे काफी हद तक बीजेपी को टेंशन में डाल सकता है क्या कहता है उनका सर्वे चलिए देखते हैं

10 मार्च को रिजल्ट आने के बाद चुनावी राज्यों में अगर आंकड़ों का पेंच फंसा तो सभी को राज्यपाल याद आएंगे। सरकार बनाने में उनकी अहम भूमिका जो होगी। ऐसे में आइए हम पांचों चुनावी राज्यों के राज्यपालों के प्रोफाइल पर नजर डालते हैं। देखते हैं और अंदाज लगाते हैं कि पेंच फंसने पर राज्यपाल क्या फैसला ले सकते हैं?

सबसे पहले जानते हैं कि राज्यपालों की क्या खास भूमिका होती है?
विधानसभा चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल ही न्योता देते हैं, इसलिए चुनाव में बराबरी का मुकाबला होने पर राज्यपाल काफी अहम भूमिका में होते हैं। ऐसी स्थिति में राज्यपाल दो प्रमुख आधार पर न्योता देते हैं। पहला, सबसे बड़ी पार्टी को।

दूसरा, राज्यपाल किसी गठबंधन को भी न्योता दे सकते हैं जब वे अपने विवेक क आधार पर यह मानते हों कि गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए पूरा समर्थन है। इसके लिए वे विधायकों के समर्थन पत्रों के साथ उनकी राजभवन में परेड भी करवा सकते हैं। यही वजह है कि किसी राज्य में बराबरी का मुकाबला होने पर गवर्नर की भूमिका अहम हो जाती है।‌‌‌‌

2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात CM की कुर्सी छोड़ने के बाद आनंदीबेन पटेल गुजरात की मुख्यमंत्री बनी थीं। इस वक्त वह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल हैं।
1987 की बात है। अहमदाबाद के मोहिनीबा कन्या विद्यालय की प्रिंसिपल अपनी स्टूडेंट्स के साथ पिकनिक पर गई थीं। इस दौरान उनकी दो छात्राएं नर्मदा नदी में गिर गईं। उन्हें डूबता देख प्रिंसिपल बिना किसी परवाह के नदी में कूद गईं और दोनों को बाहर निकाल लाईं। ये प्रिंसिपल आनंदी बेन पटेल थीं।

आनंदीबेन के पति मफतभाई पटेल उन दिनों भाजपा के बड़े नेता था। नरेंद्र मोदी और शंकर सिंह वाघेला ने आनंदीबेन को भी भाजपा से जुड़ने के लिए कहा। उसी साल आनंदीबेन भाजपा में शामिल हो गईं और गुजरात प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं।

इसके बाद 1994 में गुजरात से राज्यसभा सांसद, 1998 में विधायक और शिक्षा मंत्री बनीं। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भी आनंदीबेन मंत्री बनी रहीं। 2014 में नरेंद्र मोदी के गुजरात CM की कुर्सी छोड़ने के बाद आनंदीबेन पटेल को जिम्मेदारी दी गई। आनंदी बेन का पूरा राजनीतिक करियर भाजपा और खासकर मोदी धड़े में बीता है। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनने से पहले वो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की भी राज्यपाल रह चुकी हैं।

1978 से राजनीति में सक्रिय रहने वाले बनवारी लाल पुरोहित (दाएं) इस वक्त पंजाब के राज्यपाल हैं। वे दो दशकों से BJP के साथ रहे हैं।
2018 की बात है। तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। कॉन्फ्रेंस में एक महिला पत्रकार ने उनसे कोई सवाल पूछा। पुरोहित ने जवाब न देकर महिला पत्रकार के गाल थपथपा दिए। इस मामले को लेकर काफी बवाल मचा और पुरोहित को माफी मांगनी पड़ी।

पुरोहित इस वक्त पंजाब के राज्यपाल हैं। वो महाराष्ट्र के विदर्भ जिले के जाने-माने नेता हैं। उन्होंने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस पार्टी से शुरू किया था। 1978 में वह पहली बार नागपुर ईस्ट से विधायक चुने गए। इसके बाद 1984 में पुरोहित 8वें लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी से सांसद बने थे।

1999 में वह कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुए। 2003 में बनवारी लाल ने विदर्भ राज्य पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया। 2009 में वह एक बार फिर से BJP में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन इसमें उनकी हार हुई। अगस्त 2016 में बनवारी लाल को असम का गवर्नर नियुक्त किया गया, फिर 2017 में वह तमिलनाडु के राज्यपाल नियुक्त हुए। 27 अगस्त 2021 को वह पंजाब के राज्यपाल नियुक्त किए गए।

  1. गोवाः राज्यपाल एस श्रीधरन पिल्लई 2 बार रह चुके हैं केरल BJP अध्यक्ष

लंबे समय तक केरल की राजनीति में सक्रिय रहने वाले पूर्व BJP प्रदेश अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई इस वक्त गोवा के राज्यपाल हैं।
कोरोना महामारी के दौरान पहली बार 24 मार्च 2020 को देशभर में लॉकडाउन लगा। इसके बाद मार्च से अगस्त के बीच 4 महीने में पीएस श्रीधरन पिल्लई ने 13 किताबें लिख दीं। इस वक्त यही श्रीधरन गोवा के राज्यपाल हैं। पहली बार श्रीधरन अक्टूबर 2019 में मिजोरम के राज्यपाल बनाए गए थे। इसके बाद उन्हें गोवा में राज्यपाल की जिम्मेदारी मिली।

पीएस श्रीधरन पिल्लई 2003 से 2006 के बीच केरल BJP प्रदेश अध्यक्ष रहे थे। इस दौरान 2004 में पहली बार केरल और लक्षद्वीप में BJP ने संयुक्त रूप से 2 लोकसभा सीटें जीती थीं। 2018 में एक बार फिर से उन्हें BJP प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

पीएस श्रीधरन पिल्लई ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ABVP से की थी। श्रीधरन युवा अवस्था से अब तक BJP के बेहद करीबी हैं, इसी वजह से तोहफे में उन्हें राज्यपाल का पद मिला है।

  1. मणिपुरः ला गणेशन ने राजभवन को दिए प्रोफाइल में बताया RSS से पारिवारिक नाता

ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। वह इससे पहले BJP के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
2003 की बात है। तमिलनाडु BJP के उस वक्त के अध्यक्ष किरुबानिधि और BJP नेता ला गणेशन एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए मध्य प्रदेश पहुंचे थे। इस दौरान गणेशन ने आपसी विवाद के बाद जाति का जिक्र करते हुए किरुबानिधि को कोसना शुरू कर दिया। इसके बाद वे विवादों में आ गए थे।

अब इस वक्त ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। 27 अगस्त 2021 को उन्होंने ये पद संभाला था। इमरजेंसी के बाद 1970 से ही ला गणेशन BJP से जुड़े रहे हैं। गणेशन BJP में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल सेक्रेटरी के पद पर रह चुके हैं। 5 दशक से ज्यादा समय से पार्टी से गहरे जुड़ाव की वजह से ही उन्हें यह अहम जिम्मेदारी दी गई थी। अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर परिचय में राज्यपाल ने RSS से जुड़ाव की जानकारी दी है।

  1. उत्तराखंडः राज्यपाल गुरमीत सिंह सेना के पूर्व उप प्रमुख रह चुके हैं

ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। वह इससे पहले BJP के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
2003 की बात है। तमिलनाडु BJP के उस वक्त के अध्यक्ष किरुबानिधि और BJP नेता ला गणेशन एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए मध्य प्रदेश पहुंचे थे। इस दौरान गणेशन ने आपसी विवाद के बाद जाति का जिक्र करते हुए किरुबानिधि को कोसना शुरू कर दिया। इसके बाद वे विवादों में आ गए थे।

अब इस वक्त ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। 27 अगस्त 2021 को उन्होंने ये पद संभाला था। इमरजेंसी के बाद 1970 से ही ला गणेशन BJP से जुड़े रहे हैं। गणेशन BJP में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल सेक्रेटरी के पद पर रह चुके हैं। 5 दशक से ज्यादा समय से पार्टी से गहरे जुड़ाव की वजह से ही उन्हें यह अहम जिम्मेदारी दी गई थी। अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर परिचय में राज्यपाल ने RSS से जुड़ाव की जानकारी दी है।

  1. उत्तराखंडः राज्यपाल गुरमीत सिंह सेना के पूर्व उप प्रमुख रह चुके हैं

ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। वह इससे पहले BJP के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
2003 की बात है। तमिलनाडु BJP के उस वक्त के अध्यक्ष किरुबानिधि और BJP नेता ला गणेशन एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए मध्य प्रदेश पहुंचे थे। इस दौरान गणेशन ने आपसी विवाद के बाद जाति का जिक्र करते हुए किरुबानिधि को कोसना शुरू कर दिया। इसके बाद वे विवादों में आ गए थे।

अब इस वक्त ला गणेशन मणिपुर के राज्यपाल हैं। 27 अगस्त 2021 को उन्होंने ये पद संभाला था। इमरजेंसी के बाद 1970 से ही ला गणेशन BJP से जुड़े रहे हैं। गणेशन BJP में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नेशनल सेक्रेटरी के पद पर रह चुके हैं। 5 दशक से ज्यादा समय से पार्टी से गहरे जुड़ाव की वजह से ही उन्हें यह अहम जिम्मेदारी दी गई थी। अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर परिचय में राज्यपाल ने RSS से जुड़ाव की जानकारी दी है।

  1. उत्तराखंडः राज्यपाल गुरमीत सिंह सेना के पूर्व उप प्रमुख रह चुके हैं। इस प्रकार से यदि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो राज्यपाल की भूमिका अति महत्वपूर्ण होगी। अब कुछ ही घंटों पंचायत स्थिति स्पष्ट हो जाएगी किसकी पार्टी पर जनता जनार्दन मुकुट लगती है।

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