लोहाघाट : सुई बिशुंग के प्रसिद्ध वायुरथ महोत्सव मान्यता है कि जो भी निसंतान महिला चलते हुए वायुरथ के नीचे से गुजरती है तो उसकी गोद भर जाती है!! अटूट आस्था व विश्वास@ ग्राउंड जीरो से लाइव

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लोहाघाट में सुई बिसुंग गाँव मां का डोला 25 गांव में घुमा :आस्था के आगे कोरोना पस्त ! श्रद्धालुओं का अपार जनसमूह उमड़ा

प्रसिद्ध वायुरथ महोत्सव ; अटूट विश्वास और मान्यता के अनुसार संतान के लिए यहां वायुरथ के नीचे से गुज़रती हैं महिलाएं

लोहाघाट के सुई बिशुंग के प्रसिद्ध वायुरथ महोत्सव मान्यता है कि जो भी निसंतान महिला चलते हुए वायुरथ के नीचे से गुजरती है तो उसकी गोद भर जाती है. इसी के चलते सभी निसंतान महिलाएं रथ के नीचे से गुजर कर मां भगवती व देव डांगरों का आशीर्वाद प्राप्त करती है. सुई विशुंग के प्रसिद्ध वायुरथ महोत्सव के दौरान रक्षाबंधन के दिन बिना रस्सों के सहारे मां भगवती के वायु रथ पांच गांव सुई और बीस गांव बिशुंग की परिक्रमा करते है. इससे पूर्व विधि विधान से सुई के शिव मंदिर प्रांगण में चार द्योली के देव-डांगरों को पवित्र जल व दूध से स्नान कराया जाता है. वायुरथ यात्रा चौबे गांव के आदित्य महादेव मंदिर से सायं शुरू होती है. जो पऊ, चनकांडे, डुंगरी होते हुए विशुंग को निकलती है. पऊ के मस्टा प्रांगण एवं चनकांडे में प्राचीन चौपाड़ी में विश्राम के दौरान देव-डांगरों – श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते है. इसके बाद रथ कोटाल गढ़, द्योला गढ़, विशुंग के टाक क्षेत्र में पहुचते है. टाक में पवित्र जल व दूध से स्नान करने के बाद भगवती के अवतार व अन्य देव-डांगर चाकबुड़ी पहुचते है. जहां न्याय गद्दी लगाकर वायु रोग से पीड़ित लोगों के दुख-दर्द को ठीक कर रथ को मां कड़ाई देवी मंदिर ले जाया जाता है. इससे पूर्व जैसे ही रथ सुई के कोटाल गढ़ में भगवती मंदिर से गुप्त प्योली को विशुंग के मां कड़ाई देवी मंदिर ले जाया जाता है, जहां मां भगवती व मां कड़ाई देवी का मिलन होता है,. उसके बाद उख्खा कोट में भी देवी और रानी उख्खा से मिलन होता है. रथ में मां भगवती के अवतार विराजमान होते है. इसके बाद देर शाम रथ को शिव मंदिर सुई लाया जाता है. जहां पूजा अर्चना के बाद वायुरथ विसर्जित किया जाता हैll

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